हरिद्वार नवम्बर 17 (कुल भूशण षर्मा) श्री चन्द्र प्रभ दिगम्बर जैन मंदिर के तत्वावधान में विगत चार दिनों से आयोजित हो रहे श्रीमज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के चतुर्थ दिन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया प्रातः काल से ही भगवान का अभिषेक शांतिधारा, नित्य पूजा, दीक्षा कल्याणक पूजन एवं हवन आदि का आयोजन किया गय। अनुष्ठान के इन्द्र मण्डल ओपी जैन, विमल कुमार जैन, पदम कुमार जैन, अनिल जैन, अशोक जैन, सतीश जैन, अभिषेक जैन, एसके जैन एवं मगनमाला जैन ने पूजन एवं हवन में विशेष रूप से प्रतिभाग किया। क्षममूर्ति विशद सागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि किसी से अपेक्षा और हमारे द्वारा किसी की गयी उपेक्षा ही क्रोध, ईष्या और दुःख का कारण है जो पाप है। उन्होंने संसार के मोह चक्र से बचने का सूत्र देते हुए कहा कि न किसी से अपेक्षा रखे और न ही किसी की उपेक्षा करे। आप चाहे किसी भी सीमा क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं यदि नीतिपूर्वक आचरण करोंगे तो आपके कुल का नाम रोशन होगा और अन्याय, मिथ्या भाषण, लोभ, काम, क्रोध दुर्गति के कारक बनेंगे। क्षमामूर्ति विशद सागर जी महाराज ने श्रीपंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की विश्राम बेला में जैन धर्मावाम्बियों को धर्म के मार्ग का अनुसरण करने का उपदेश देते हुए कहा कि मृत्यु अटल सत्य हैं पल-पल गुजर रहा है इस कारण धर्म का आश्रय लेकर जीवन में परोपकार, क्षमाशीलता, अहिंसा, दया, करूणा, वात्सल्य, मैत्री भाव का आश्रय लेकर जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न करें। कार्यक्रम के सूत्रधार सतीश जैन ने बताया कि सोमवार को कैलाश पर्वत पर प्रभु आदिनाथ का निर्वाण, निर्वाण कल्याणक पूजन, विश्व शांति महायज्ञ की पूर्णाहूति के साथ मण्डल ध्वज विसर्जन, पात्रों तथा अतिथियों का सम्मान एवं भव्य रथयात्रा द्वारा श्रीजी को पण्डाल से मंदिर ले जाने की प्रक्रिया वैदी में जिनबिम्ब स्थापना, कलशारोहण एवं शिखर पर ध्वज स्थापना जिनवाणी मंदिर की स्थापना के उपक्रम आयोजित किये जायेंगे। आयोजन कमेटी के प्रवक्ता आरके जैन ने बताया कि पांच दिवसीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की विश्रामबेला में जैन धर्म के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, समाजसेवियों एवं राजनेताओं का आगमन होगा। आज के समारोह में मुख्य रूप से अंशुल जैन, समर्थ जैन, अनिल जैन, संदीप जैन, ईश्वर जैन, रामगोपालदास जैन, विश्वास जैन, नितेश जैन सहित जैन समाज के विशिष्ट लोग उपस्थित रहे।
अपेक्षा और उपेक्षा ही दुःख, क्रोध का कारण